पय्थागोरस को दुनिया के महान गणितज्ञों में से एक माना जाता है, उन्हें एक महान रहस्यवादी और वैज्ञानिक का भी श्रेय प्राप्त है| इन्होने इस दुनिया को पय्थागोरिय्न प्रमेय दिया जो आज तक गणित में प्रयोग किया जाता है| उन्होंने दर्शन और धार्मिक शिक्षण के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया, हालांकि उनमें से सभी गणित पे आधारित थीं| वे पहले आदमी थे जिन्होंने खुद को एक दार्शनिक या ज्ञान का प्रेमी बुलाया और वे इस पूरी दुनिया में संख्याओं के पिता (father of number) के रूप में प्रसिद्ध हो गये|
बचपन व प्रारम्भिक जीवन
पय्थागोरस का जन्म समोस (samos) के एक द्वीप में हुआ था जो प्राचीन ग्रीस में था| इस महान विद्वान के जीवन से संबंधित कोई प्रमाणिक रिकॉर्ड नहीं हैं, जो निश्चित तारीख और अन्य मुद्दों के साथ निर्धारित किया जा सके, लेकिन यह माना जाता है कि उनका जन्म ५७० इ.पू. में हुआ था| पय्थागोरस के पहले शिक्षक का नाम फेरेक्डेस् (Pherecydes) था और पय्थागोरस उनके मृत्यु तक उनके ही संपर्क में रहे| जब वह १८ वर्ष का हुआ वह लेस्बोस (lesbos) के द्वीप पे चला गया, वहाँ वह अनाक्सीमंडर (Anaximander) से ज्ञान प्राप्त करने लगा| अनाक्सीमंडर एक बहुत ही बुद्धिमान खगोल विज्ञानी, दार्शनिक, और गणितज्ञ थे|
संख्याओं के पिता
पय्थागोरस को “संख्याओं के पिता” के नाम से जाना जाता रहा है| उन्होंने ई.पू. ६ वी. शताब्दी में दर्शन और धार्मिक शिक्षण के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया| उनका यह मानना था कि सब कुछ गणित से संबंधित है, और उसे लयबद्ध पैटर्न या चक्र में मापा या अनुमान लगाया जा सकता है| पय्थागोरस सिडों (sidon) भी गये थे जहाँ वे टायर (tyre) और बेब्लोस (byblos) के रहस्यों को पता लगाने लगे, इसके बाद वे मिश्र चले गये| वहाँ उन्होंने खुद को अपने शिक्षक थेल्स (thales) के शिक्षण में रखा| इसके बाद उन्होंने अपने बाईस वर्ष खगोल विज्ञानं, गणित और संगीत को दे दिया और अंत में वे मिश्र के रहस्यों को समझने में लग गये|
भारतीय प्रवास
जब काम्ब्य्सेस (cambyses) ने मिश्र पे आक्रमण किया, तो उसने पय्थागोरस को कैदी बनाकर बेबीलोन (babylon) भेज दिया| पय्थागोरस ने अपने अगले बारह वर्ष मैगी (magi) के साथ पढाई में लगाया और फिर वे कलडीन रहस्य को समझने में लग गये| बाद में उन्होंने बेबीलोन को छोड़ दिया और इसके लिए उन्होंने अपना मार्ग फारस और भारत से होकर बनाया जहाँ उन्होंने अपनी शिक्षा फिर से ब्राच्मैंस (brachmanes) के पास रह कर कि वे पूर्व – मूल - स्रोत के बहुत बड़े ज्ञानी थे| पय्थागोरस एक छात्र के रूप में भारत आये थे और उन्होंने इसे जब छोड़ा तो वे एक महान शिक्षक थे|
यूरोप यात्रा
क्रोटोना (Crotona) पहुँचने के बाद उन्होंने युवाओं के एक समूह को एक व्याख्यान (lecture) दिया| कुछ दिनों बाद पय्थागोरस को क्रोटोना के सीनेट के पास बोलने के लिए आमंत्रित किया गया| वहाँ उन्होंने सीनेटर को एक मंदिर बनाने कि सलाह दी, जहाँ पे ध्यान कर एक अच्छे सरकार के प्राथमिक आवश्यक गुणों को याद दिलाया जा सके एवं एक नागरिक को दार्शनिक ज्ञान दिया जा सके जो आज एक अच्छी व्यवस्था के लिए जरुरी है| पय्थागोरस को क्रोअटिया (Croatia) में एक संसथान के निर्माण की अनुमति मिली जिसमें बहुत प्रकार के विद्यालय जैसे दार्शनिक, नैतिक प्रशिक्षण, और विज्ञान कि शिक्षा के लिए थे| इस संस्थान में पहले आठ वर्षों तक सामान्य शिक्षा का प्रबंध था इसके बाद जब वे उच्च शिक्षा के लिए उच्च वर्गों में प्रवेश करते तो उन्हें वहाँ गोपनीय शिक्षा मिलती जो सामान्य से काफी अलग थी|
पय्थागोरिय्न प्रमेय (Pythagorean Theorem)
पय्थागोरस ने जो पय्थागोरिय्न प्रमेय दिया उसका ज्ञान पहले से ही भारत, मिश्र और मेसोपोटामिया में थी| पय्थागोरस ने खुद इस प्रमेय को सिद्ध नही किया था ये तो उनकी जानकारी से भी पहले से प्रयोग में था फिर भी इस प्रमेय के साथ उनका नाम ही आता है क्यूंकि इस प्रमेय का प्रयोग तो हो रहा था परन्तु इसकी जानकरी किसी को नही थी और इसके प्रथम उपयोगकर्ता कि भी कोई जानकारी नही, तो हमें जब से जानकारी प्राप्त है उसके अनुसार पय्थागोरस ने ही इस दुनिया को इस प्रमेय कि सार्थकता का ज्ञान कराया| वैसे उनका नाम भी उनके जीते जी इस प्रमेय के साथ न जुड सका, उनकी मृत्यु के ५ सदियों के बाद ही उनका नाम इस प्रमेय के साथ जुड़ा| इतिहास में उनकी मृत्यु कि कोई तारीख अंकित नही है इस कारण हमें उनकी आयु अवधि का भी ठीक तरह से ज्ञान नही|